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॥ श्री वीतरागाय नमः ।। श्री रामायणा द्वितीय भाग
सीताभामण्डलोत्पत्ति मंगलाचरण
दोहा जिनवाणी नित्य दाहिने, अरिहन्त सिद्ध जगदीश । परमेष्ठी रक्षा करें, त्रिपद धार मुनीश ।। अजर अमर अमूर्ति, निराकार भगवन्त । लोकालोक में आपका, फैला ज्ञान अनन्त ।। फैला ज्ञान अनन्त स्वयं, सचित आनन्द अविनाशी। फिरें भटकते जीव चराचर, पड़ी कर्म गल फांसी ।। सत्चित् निश्चय पास किन्तु, आनन्द की करें तलाशी। अज्ञान अन्ध में पड़े जीव, नहीं पावें मोक्ष सुख राशी ।। -
दौड़ बिना जिन देव धर्म के पास नहीं कटे कर्म के । घूम सारे जग आया, बिना तुम्हारे देव सहारा
नहीं दूसरा पाया ।
दोहा भामण्डल सीता सुता, युगल पणे अवतार । प्रसन्न हुदा राजा जनक, और विदेहा नार ।।