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रामायण
नियत समय पर कोतवाल, दशरथ के सन्मुख लाया है। भूपाल ने रहस्य समझ कुडल मंडित को यों समझाया है।
दोहा (दशरथ) विषय वासना जगत में, शत्रु महा कठोर । अशुभ कर्म से वन गया, राजकुमर से चोर ।। शिक्षाप्रद वचन हमारे है, मन से अब आर्ति ध्यान तजो। इस दुष्ट विलासिता को तज कर मनुष्य बनो जिन राजभ जो।। क्षमा सभी अपराध किया, तुमसे न द्वेष हमारा है। पहिचानो अपने गौरव को, इसमें ही भला तुम्हारा है।
दोहा शिक्षा देकर इस तरह, मन रिपुता से मोड़। कुडल मंडित को दिया, दशरथ नृप ने छोड़ ।। उपकार मान नृप का, चला पहुंचा निज स्थान । कुडल मंडित को रहे, नित्य प्रति आर्तध्यान ।।
छन्द
राज का रहे ख्याल निशदिन, शोच अति मन मे करे। ताज पाऊँ राज का, मेरा पिता जल्दी मरे ।। अविनीत पन का ताज अब तो, सिर मेरे रक्खा गया ।
स दिन से आया भाग, अरु कुव्यसन यह चक्खा गया। मम बुद्धि पर परदा पड़ा और सोच सब मारी गई। अब राज की भी हाय कुजी , हाथ से सारी गई। रहता पिता के पास और गुप्त रखता वाम यह । स्वामी बना रहता हमेशा, क्यों बिगड़ता काम यह ॥