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सीताभामण्डलोत्पत्ति
दोहा
इतने मे आया नजर, मुनिचन्द्र ऋषि राय कुमार जाय वंदना करी, चरणन शीस नवाय ॥ जो भी मन की बात थी, सभी दई बतलाय सुनकर के मुनि ने दई, कर्म गति दर्शाय ॥
छन्द
चोले मुनि हे कुमर तू, कुछ धर्म चित्त लाया नहीं | खेदति है भय जरा, परभव का भी खाया नहीं || प्रत्यक्ष तुझ को कुव्यसन का फल तो यहां कुछ मिल गया । जो था सितारा पुण्य का, वह सब किनारा कर गया || और जो कर्तव्य तेरा, नरक का परिणाम है । 'चाल चिंते भूप की, यह दुष्ट तेरा ध्यान है || देऊ तुझे शिक्षा समझ, तन मन से रखना पास यह । दोनो भवो में लाभदायक, छोड़ती नहीं साथ यह || धर ध्यान श्री अरिहन्त का, अन्तः करण निग्रह करो । द्वादश नियम कर गृहस्थ के, गुण ग्रहण मे दृष्टि धरो ||
दोहा
सागरी व्रत मुनि से, लिये कुमर ने धार
' किन्तु इच्छा राज की, रहती मन मंझार ॥
इसी विचार मे मरा अन्त, जनक भूप के जन्म लिया । आ • सरसा ब्राह्मण की पुत्री, बन फिर तप संयम में ध्यान दिया || पहुंची ब्रह्म लोक + जाकर वहां दीर्घ काल आराम किया । सुर आयु भोग विदेही, रानी के सीता अवतार लिया || + पांचवे देवलोक