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सीताभामण्डलोत्पत्ति
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यह कर्म बड़े बलवान् जीव को, खुशी मे दुःख दिखलाते है। करते प्राणी नेत्र बन्द कर, फिर पीछे पछताते है। अब सुनो हाल भामण्डल का, जिसने आकर के जन्म लिया। होगया विरह बचपन से ही, नहीं मात तात अन्न पान किया ।
दोहा , जम्बू द्वीप भरत क्षेत्र मे, दारुण नामक ग्राम ।
अनुकोशा का है पति, द्विज वसुभूति नाम ।। अनुभूति है नाम पुत्र का, वधू सरसा सुखदायी है। कयान विप्र ने मोहित होकर, सरसा स्वयं चुराई है। ढूढ़न को पतिदेव गया, नहीं पता कहीं पर पाया है। पीछे मोह वश गई मात, और संग पिता उठ धाया है।
दोहा जात वाम की फिर मिले, मिले लाल दुश्वार । __ पुत्र के मोह मे फिरे, दोना होते ख्वार ।। मार्ग मे निग्रन्थ मिले जिन, दुःख नाशक उपदेश दिया। मोह कर्म सिर डाल धूल, दोनो ने संयम भेष लिया । पहिले स्वर्ग पहुँचे जाकर, सुरपुर के सुख भोगे भारी । आ जन्म लिया वैताडगिरी, फिर भी हुए दोनो नरनारी ॥
कड़ा प्यारे जी चन्द्रगति भूपाल नाम विद्याधर भारी। पुष्पावती अभिराम, नाम सुन्दर तसु नारी ॥
दोहा सरसा नजर बचाय के, भागी अवसर देख । संयम का शरण लिया, अविचल रखे टेक ।।