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श्रीराम जन्म
भरत शत्रुघ्न की जोड़ी, थे अतुल बली योधा भारी । तेज प्रताप प्रचण्ड अति, महा वृद्धि होने लगी सारी ॥ ग्रीष्म अन्त जैसे श्रावण, या जैसे मेला जंगल मे । शुभ शुक्ल समाज मिला ऐसे, सुख जैसे सुर नन्दन वन में || यह पहिला अधिकार हुवा, दशरथ राजा सुख पाया है । तेल बिन्दु सम गया फैल, जगी सामान बनाया 1 तर्ज-- ( कौन कहता है कि जालिम को )
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सर्व सिद्धि के लिये ब्रह्मचर्य ही प्रधान है, सत्य भाषण दूसरा, निर्बद्ध मेढ़ी समान है || २ ||
समभाव और एकाग्रता, निज लक्ष मे तल्लीन हो । निर्भीक निरभिमान हो और साधन सभी का ज्ञान हो ||२|| सेवा भक्ति और विनय से योग्य गुरू की तो कृपा, एकान्त सेवी मौन ग्राही अटल श्रद्धावान् है ||३|| कार्याकार्य विचारक और भाव ऊंचे हो सदा, गुरु शास्त्र धर्म देव संगसेवा मे जिसका ध्यान है || ४ || दान जप तप भावना शुभ पुण्य का संचय भी हो, शुक्ल साधन धर्म ध्यानी, शुद्ध खान व पान हो ||२५|| जैसी जिसकी भावना, सिद्धि भी तदुनासार है, मंत्र का नम्बर बदलने का भी जिसको भान है || ६ || ॥ इति प्रथमो भागः समाप्त ॥