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श्रीरामजन्म
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दोहा छठे सरोवर में कमल, खिले हुए शुभ रङ्ग ।
रानी को ऐसा मिला, स्वप्ने में प्रसंग ।। भरा समुद्र देख सातवें, रानी मन हर्षाई है। निश्चय कर फिर पति पास, जा सारी बात सुनाई है ।। सुनते ही राजा के मन में, खुशी का ना कोई पार रहा। फल विचार स्वप्नों का नृप ने, रानी को सब हाल कहा ।।
दोहा 1 रानी सुत होगा तेरे, प्रबल सिंह समान ।
तेज प्रताप सम रवि के, फैले पुण्य महान् ।। शुभ पुण्य अहो रानी जिसका, सागर मानिन्द लहरायेगा । श्राधीन करे सब दुनिया को, अति शूर वीर कहलायेगा ।। निर्भय सिंह हस्तियों में, ऐसे यह दरजा पावेगा । जव उत्तरेगा रण भूमि मे, सन्नाटा सा छा जावेगा ।। ।
दोहा यथा योग्य नित्य पथ्य से, रही गर्भ को पाल ।
मास सवा नौ में हुवा, आन अनुपम लाल । देवलोक से चलकर आया, पुण्यवान योद्धा भारी । राज कुमार का रूप देख कर, प्रेम करें सब नरनारी ।। नारायण शुभ नाम दिया, प्रसिद्ध महा अति सुखकारी । उत्सव का कुछ पार नहीं, दशरथ नप दान किया भारी ।।
दोहा वहत्तर कला प्रवीण थे, दोनों राज कुमार । । शूरवीर योद्धा अति, देख खुशी नर नार ।।