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रामायण
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देख भुजा बल दशरथ राजा, पुरी अयोध्या आया है । कैकेयी रानी के पुत्र हुवा, शुभ नाम भरत कहलाया है ॥ शत्रुघ्न पुत्र हुवा चौथा, दशरथ नृप सुन हर्षाया है नग गज दन्तो तरह, भूप मेरू मानन्द शोभाया है ॥ सुप्रभा रानी के हुवा शत्रुघ्न, पाठान्तर से चाहे जैसे हो प्रेमपूर्वक चारो भाई
कहते हैं । रहते हैं |
गाना नं ० ५५
(तर्ज - प्रेम हो भाई भाईयो मे तो क्या आना ) सूर्य आगे भगे रजनी, यूं दुख सत्र भाग जाता है ||टेर || भाप बन कर बने बादल, बूंद मिल कर बने दरिया, सभी मे डालकर जीवन नदी नाले बहाते है ॥२॥ अनन्त मिल के परमाणु, मनुष्य का तन बने शोभन, प्राणदश की सहायता से, स्वर्ग अपवर्ग पाता है ॥२॥ रत्नत्रय के समह में जो तन तल्लीन बन जाते, उडा कर कर्म लस्कर को सच्चिदानन्द कहाते हैं ॥३॥ देवगुरु और धर्म शास्त्र ध्यान दो सोभत मिल जावें, शुक्ल आवागमन का आत्मा फेरा टलाता है ||४|| प्रेम जिन ब्रह्म और विश्नु, प्रेम है देव देवन का, आज तक प्रोम भाईयो का सभी संसार गाता है ||५||
दोहा
उमंग ।
रंग ॥
दशरथ राजा की हुई पूरी सभी पुण्य उदय कुल बाग में, खिलने लगा शुभ राम लक्ष्मण की जोड़ी, नीलाम्बर पीताम्बर सोहे । था प्र ेम परस्पर दोनो का, अति राज हंस सम मन मोहे ॥