________________
१७०
रामायण
AAAAA
( रा० ) कल्याण यही
(भू० ) शुक्ल कार्य शुद्ध उन्हीं का जिसका शोभन ध्यान है
॥ सच ॥ ४ ॥
दोहा
f
रंग ढंग सब स्वप्न का, बतलाया तत्काल । खुशी की ना अवधि रही, सुना सभी जब हाल ||
}
कहा सुन रानी कोई पुण्यवान्, सुत जन्म तेरे उर पावेगा । नाम प्रसिद्ध करे अपना, और कुल का सुयश बढ़ावेगा || आधार भूत सब दुनिया का अय रानी वह कहलावेगा । पर दुःख भंजन प्रेम सदा, सागर मानिन्द लहरावेगा ॥
दोहा
गर्भ दोष सब टाल कर, पोष कारे सुख कार । शुभ नक्षत्र में सुत हुआ, होने लगी जयकार ॥ कैदी दिये छड़ाय खुशी में, दान दिये नृप ने भारी । गायन नृत्य प्रति धूमधाम, घर घर मङ्गल गावें नारी ॥ पद्म चिह्न से तन सोहे, शुभनाम पद्म दिया सुखकारी । अभिराक लगने से फिर हुवे, राम नाम के अधिकारी ॥
दोहा
दूजी नार सुमित्रा, स्वप्न विलोके सात | सुख शय्या आराम से, सोती पिछली रात प्रथम स्वप्न में हस्ती देखा, चारों ओर उछलता हुवा | प्रबल सिंह दूसरा आया, कुम्भ स्थल को दलता हुवा || तीजे शशि रवि चौथे, आ अपनी चमक दिखाई है । धूम रहित शिखा अग्नि, शुद्ध नजर पांचवें आई है |