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रामायण
दोहा
कुछ नीति कुछ बुद्धि से, चढ़ा पुण्य का जोर ।
आस पास के देश मे, करी मित्रता और ॥ अपराजिता और रानी सब ही परिवार बुलाया है। शुभ स्थान देख गही, रचना की हुक्म चलाया है । लगा पुण्य प्रतिदिन बढ़ने जैसे घनघोर घटा छाई। शुक्ल पुण्य अनुसार समागम, मिलता है सब सुखदाई ।।
श्रीरामजन्म
दोहा
सुख में सोती एक दिन, सुन्दर सेज मंझार । महारानी अपराजिता, स्वप्न विलोके चार ।' प्रथम स्वप्न में देखा हस्ती, अद्भुत चाल निराली है। मद झर रहा कपोल शब्द, गुजार छवि मतवाली है ।। स्वप्न दूसरे प्रबल सिंह, चिहाड़ शब्द लहरें करता। उछल कूद चहुं ओर रहा, और नहीं किसी से भी डरता ॥
दोहा ग्रहगणों का अधिपति, रोहिणी का भार ।
उतरता आकाश से, चन्द्रमा सुख कार ॥ चौथे स्वप्न में सूर्य आया, सहस्रांशु फैलाता हुवा। किया आन उद्योत उस समय, तेजी अति खिलाता हुवा ।। खुली आंख निश्चय करके, निज पति पास आई रानी। हाथ जोड़ के नमस्कार, शीतल मुख से बोली वाणी ।।