________________
रामायण
minom
Vvvv
~
~
~
~
दोहा 'मन ही मन यों सब कहें, धन्य वही भूपाल । जिसकी यह रानी बने, डाल गले वर माल ।। दशरथ नृप मन में बसा, पहनाई वर माल। . हरिवाहन नृप जल गया, चढ़ा रोष विकराल ॥ चढ़ा रोष विकराल है, किसको वरमाला पहनाई। तमाशबीन कोई खड़ा आन, गिनती राजों में नाहीं । . दे वरमाला भाग यहां से, इस मे तेरी भलाई । नहीं मार तलवार अभी, गर्दन की करू सफाई ।।
दौड़
चूक लड़की ने खाई, भूल कर तुझे पहनाई।
देर अब जरा ना करना, यदि नहीं परभव पहुँचाऊँ , तुझे ना,यहां कोई शरणा ॥
दोहा अनुचित बातें जब सुनी, दशरथ भूप उदार ।
ललकारे यो सिंह सम, सहसा ले तलवार ।। क्या आंखे काढ-काढ़ कायर, सूर्य को चमक दिखाता है।
और धमकी देकर प्रबल सिंह से, वरमाला को चाहता है ।। ' भाग यहां से जान बचा, मरना स्वीकार क्यों करता है। सूर्यवंशी सिंह कभी क्या गीदड़ से भी डरता है ।।
दोहा देख तेज रणधीर का, शुभमति करे विचार ।'
यह मामूली व्यक्ति नहीं, शूर वीर बलधार ।। बन चुका जमाई मेरा अब, इसलिये पक्ष लेना चाहिये। रण तूर बजाकर मान भंग,इनका सव का कर देना चाहिये ।।