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रावण का भविष्य
रावण का भविष्य दोहा
एक दिवस रावण- प्रभु बैठा, सभा मंकार । ज्योतिषी से तब प्रश्नयूं, किया समय विचार ||
गाना नम्बर ४६
तर्ज - (पाप का परिणाम - 1)
कौन है संसार मे जो मेरी तुलना कर सके । ऐसा भी कोई कहने का जो दम भर सके ||१|
१५६
नेत्र उठते ही मेरे त्रिलोकी थर थर कांपती । प्राण त्यागे बिन मेरा हुंकार कोई जर सके ॥२॥
सुर
पति भी कांपते है - मनुष्य मात्र चीज क्या । मेरे वैभव को न सब ससार मिल के हर सके || ३ || तेरे ज्योतिष में कहो क्या दीखता है सो बता । 'कौन योधा मेरे सनमुख, पांव आकर घर सके ||४|| अष्टांग निमत्तक की शुक्ल परीक्षा ही करनी है मुझे | वरना आगे सिंह के क्या हिरण तृणां चर सके ||५||
दोहा
परदारा सम्बन्ध से, करे कोई मेरी घात | सभी असम्भव सी लगी, मुनि कथन की बात ॥ तीन खण्ड मे बतलावो, कोई है मुझको मारन वाला । सुनते ही नाम मात्र मेरा, योद्धा पर छा जाता पाला ॥ असुर भी आज कांपते है, फिर मनुष्य मात्र है चीज ही क्या । मसल दिये सब ही कांटे, और सहस्र एक साधी विद्या ॥