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सूर्यवंशावली
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इस अवसर्पणी काल मे, सूर्य वंश महा प्रधान हुवा। प्रत्येक भूप इस वंश का, अन्तिम सयम ले निर्वाण हुवा ।।
दोहा समय-समय पर प्रकृतियां, उदय और उपशान्त । आत्म गुण मे लीन हो करें सभी का अन्त ।
(तर्ज-पाप का परिणाम प्राणी भोगते) अपने सुत को जीत के, मैं क्या विजय वाला हुवा।
निज अंश का शत्रु बना, निज हाथ का पाला हुवा ।। देश धर्म समाज घर को, हानि पहुंचाते है जो ।
ससार चक्कर मे रुले, इतिहास मुंह काला हुवा ॥ गौर कर देखें तो अपने मे ही पायेगी कसर ।
किन्तु जड़ा अज्ञान से निज अक्ल के ताला हुवाः।। निज'गुण सिवा मुझको शुक्ल, वैभव सभी खारा लगे। है ज्ञान दर्श चारित्र मे, कर्मो ने भंग डाला हुवा ॥
दोहा राज तिलक जिनको मिला, आगे उनके नाम । अनुक्रम से सुनलो सभी, शूर वीर अभिराम || ब्रह्म रथ नृप चतुमुख, हेमरथ सत्य रथ । उदय पृथु वारि शशि, आदिरथ समर्थ ॥ मान भ्राता समर्थ बली, वीरसेन शुभ नाम । प्रत्युमन्यु अति शूरमा, पद्मवन्धु सुख धाम ।। रतिमन्यु मन श्रेष्ठ है, बसन्ततिलक नरेश ।
कुबेरदत्त कुथु सर्म, द्विरद और विशेष ।। सिंह दर्श दिल पाक हरि, कसि पूजी सुखदाय । -पूज्य स्थल -प्रोढो शशि, और ककुत्स्थ रघुराय ॥