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रामायण
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सौदास देख बत्तीस लक्षणा, सब प्रजा के मन भाया है । योग्य समझ दे पंच दिव्य, सिंहासन पर बैठाया है || अब लगा सितारा बढ़ने को नृप अमर बेलवत् छाया है । और देख समय अब नगर अयोध्या अपना दूत पठाया है ॥
दोहा
दूत न कहने लगा, सिंहरथ के पास । हुक्म आपको है दिया, नृपराए सौदास ॥ सै वैसे भी हूं पिता तुम्हारा, सेवा करो मेरी आकर | या रणभूमि में आजावो, बस कहॅू साफ मै समझा कर ॥ स्वीकार किया नहीं पुत्र ने, सौदास चढ़ा दलबल लेकर । उधर अयोध्यापति सिंह रथ, आया तुरन्त बिगुल देकर || गाना नं० ४७
जिन्दगी है वीरता की, वीरता कमाये जा |
पति को काट-छांट, कदम बढ़ाये जा, पाव को उठाये जा | टेक | क्षत्रापन की ये ही शान, हाथ मे रखो मैदान,
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तोड़ दो शत्रु का मान, धीरता बधायेजा, वीरता दिखायेजा ||१||
जिन्दगी है चन्दरोज, नाम पाना ये ही मौज,
ठेल दो अगाड़ी फौज, कर्मवीर कहायेजा, शत्रु को दबायेजा ॥२॥ देश धर्म न्याय सेवा, पाले पावे मोक्ष मेवा,
शुक्ल गुरु राज सेवा, भाव से बजायेजा, कर्तव्य निभायेजा ||३|| दोहा
रणभूमि मे जुट गये, पिता पुत्र दो वीर |
पराजय सुत दल मे हुआ, जीता पिता अखीर ॥ गाना नं० ४८
हुआ
प्रेम उत्पन्न पुत्र का, हृदय से ला प्यार किया । दोनो राज्य दिये सुत को, और आप मुनिव्रत धार लिया ||