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सूर्यवंशावली
दोहा
हुआ तैयार नृप जाने को, उसी समय मुनि पास । विरक्त भाव मन में लगी, संयम की अभिलाष || चित्र जयमाला रानी ने, निज पति से विनय उचारी है । राजवंश बिन सुत के स्वामी, कैसे चले अगाड़ी है ॥ जा पुत्र तेरे उर जन्मेगा, भूपाल ने ऐसा बतलाया । राज तिलक देना उसको बस मेरे मन संयम भाया ||
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दोहा
मन्त्री के सिर पर धरा, सभी राज का भार । आप पिता के पास जा, संयम व्रत लिया धार ॥ जब सुना मात सहदेवी ने, झट गिरी धरन मूर्छा खाकर । ध्यान के वशीभूत, मर बनी सिंहनी झुंझलाकर ॥ सुकौशल और कीर्तिधर, मिल पिता पुत्र यह दोनो मुनि । तप संयम मे लीन हुए, शुभ शुक्ल ध्यान मे लगी ध्वनि ॥
वह
दोहा
चातुर्मास के बाद फिर कर दिया उग्र विहार । आन मिली वह सिंहनी, मार्ग के मंझधार || मुनिवर बोले सुनो शिष्य, यह अति परिसह श्राया है। अब होने दो मुझ को आगे, तप संयम बहुत कमाया है ।। बोले शिष्य क्यो कायर बनूं मैं आपका शिष्य कहाता हूँ । और करूँ तुम्हें डर कर आगे, इस बात से मैं शर्माता हूँ ।। गाना नं० ४६
तर्ज - ( मैं सच्चा भक्त बन जाऊँ, प्रभु देश धर्म गुरू जन का ) मै सच्चा भक्त बन जाऊ, गुरु त्यागी श्री जिनवर का । (ध्रुव) परिसह मिलकर लाखो आवे, सिंह या फनियर आके डरावे ।