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रामायण
शान्त भाव मुनिराज रहे, न क्रोध जरा भी आया है । और उधर धाय माता ने, भूप को सुकौशल समझाया है ॥ दोहा
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बिचरत मुनि या यहां, बेटा तेरा तात । नगर बाहर करवा दिया, ऐसी तेरी मात || लाड चाव के साथ मे, पाला तेरा बाप । हाय आज उसको दिया, राणी ने संताप | सुकौशल ने जब सुने, धाय मात के वैन । दारुण दुख हृदय हुवा, भर आया जल नैन ॥ अहो खेद माता ने पिता, मुनि दुख दे बाहिर निकाला है । फिर हैं संसार के त्यागी वह, संयम व्रत जिन्होने पाला है || फंसे जो प्राणी दुनिया मे, उसका होता मुंह काला है । मिले मोक्ष सुख उसे गायन, जो प्रभु का करने वाला है ॥
गाना नं० ४५
तर्ज (म्हारी कौन करेगा पार नैया सागर से -) त्यागी जन करते पार नैया सागर से
ये संसार असार कहानी, झूठा नाता राजा रानी, अन्त नहीं कुछ सार ॥१॥
1.
माता ने क्या नाता पाला, निज पति त्यागी बाहर निकाला । दे धक्को की मार ||२||
कर्म प्रकृति न्यारी न्यारी, भोगे प्राणी वारी वारी वार्थ का संसार ॥३॥
स्नेही से स्नेह करूंगा, वीतराग की सरन परूंगा होम उद्धार ||४|
सम्यक् ज्ञान दर्श चारित्र, वीरता हो शुद्धभाव पत्रिव शुक्ल ध्यान सुख कार ||५||