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सूर्यवंशावली
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चौपाई जब घर नन्दन जन्मे आई । तब संयम लेना नपराई । जिसके पीछे नहीं सन्तान । उसका घर श्मशान समान ।।
दोहा मन्त्री की यह बात सुन, लिया भूपमनमोड़ । बोला सुत होगा तभी, देवेगे मोह तोड़ ।। सहदेवी के पुत्र हुवा, नही भेद बताया रानी ने। पर ऐसी नहीं यह चीज, हमेशा छिपे कहीं राजधानी मे ॥ लगा पता,जब भूपति को, ता जन्म उत्साह किया भारी। सुत अपने को दिया राज, और आप बने सयम धारी ॥
दोहा जिनवाणी हृदय धरी करते उग्र यिहार। पुरी अयोध्या आ गये, विचरत वह अणगार ।। सुना श्रागमन मुनि का, रानी मन दुख पाय। प्रथम राज को तज गया, अब ना सुत ले जाय ।। अन्य फकीर बुलाये रानी, जटा जूट जकड धारी। दिनरात जहां उड़ता सुलफा, और बम बम शब्द रहे जारी ॥ फिर उनसे कहा यह रानी ने, यह साधु शहर वाहिर कर दो। यदि तंग करे तुमको कोई, तो मुझको शीघ्र खबर कर दो।।
दोहा अब तो फिर क्या ढील थी, चढ़े वह भंगड नाथ । नगर बाहर मुनि कर दिया, धक्कम धक्के साथ ॥ जब सुनी बात यह जनता ने, तो दिल मे दुख हुवा भारी। यह दशा देख कर बाबो ने, की रानी से हो जारी ।।