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रामायण
गाना नं ३५
( वसन्तमाला बहरे तबील ) अरि रानी तू रोके सुनाती किसे,
बिना धर्म के कोई हमारा नहीं ।
आके कष्ट से कोई सहायक बने,
ऐसा दुनिया मे कोई प्यारा नहीं । रानी जब तक सरोवर मे पानी रहे,
सूखे पानी कोई ना चरण श्रधरे,
वहां चारो तरफ से आ मेला भरे ।
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सारे माता पिता मित्र बन्धु कोई,
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उड़ता पक्षी भी लेता उतारा नहीं ।
कोई मीठा वचन भी ना कहता सती,
और सासु सुसर भाई द्वारा पति ।
जिन राज भजो मन धीर धरो,
जब होता है पुण्य सितारा नहीं ।
शुक्ल शोभन कर्म से ही पाप हरो,
सिद्ध ईश्वर प्रभु का ही ध्यान करो ।
बिना धर्म के होगा गुजारा नहीं । अंजना गाना नं० ३६
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कर्म चक्र ने निश्चय ही मुझे, दरदर रुलाया है । किसी का दोष क्या इसमे लिखा कर्मों का पाया है ।। किसी को आसरा देकर, निराशा कर दिया होगा । इसी कारण मेरी जननी ने भी मन से भुलाया है || सताई है अवश्य निर्दोष, कोई आत्मा मैने । मुझे व्यभिचारिणी कहकर, जो सासु ने सताया है ॥