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सूर्यवंशावली
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अनंग कुसुमा शूर्पनखां की, पुत्री रूपवती प्यारी । वह हनुमान को परणाई, रावण ने समझा हितकारी॥ वानर पति ने निज पद्म, सुरागा पुत्री वज्रग को व्याही शूरवीर अति बली समझ, राजो ने पुत्रियां परणाई ॥
चौपाई आदर या हनुमत घर आया। मात पिता को शीश-नमाया ।। भोगे सुख पूर्ण संसारी । धर्म जिनेश्वर अति हितकारी ॥
जनक परिचय
दोहा मथला नगरी अति भली, हरिवंशी राजान् । चासव केतु भूपति, विपला नार सुजान.॥ तेज बड़ा रवि तुल्य है, नाम जनक जग जोय । अजा पाले प्रेम से, पिता सरीखा होय ।
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सूर्यवंशावली
दोहा जिस कुल मे पैदा हुवे, श्रीरामचन्द्रजी श्रान ।
हाल सुनो क्रम से सभी, हुए जो है राजान् ।। जम्बूद्वीप दक्षिणाधे, अयोध्यापुरी राजधानी थी। आदीश्वर आद्य नरेश, जिन्होने दया मुख्य मानी थी । सुनन्दा सुमंगला नृप के, दो सुन्दर रानी थी। - निन्यानवे पुत्र सुमंगला के, हुए-बड़ी जो पटरानी थी।