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- रामायण
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करी चरण प्रसारण, आपकी प्रेमाज्ञा पाऊं मै । स्वयं विराजे सिंहासन, संग्राम पिता जाऊं मै ॥ वरुण भूप को कुचल मना कर आन अभी आऊं मै । धरो पीठ पर हाथ मेरे, क्षत्री सुत कहलाऊं मैं ॥ धसूंगा जब जा रण मे, मचे खल बल सब दल में । क्षत्रिय का बच्चा हॅू, देवो मुझे आशीश नही रण के फन मे कच्चा हॅू ॥
दोहा
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आज्ञा पा भूपाल की, चला वीर हनुमान । सुग्रीवादि भूपति, मिले युद्ध में आन ॥ लगा घोर संग्राम होन फिर, दल बल का कोई पार नहीं । नभ मे लड़े विमान और, चलते है अग्नि वाण कहीं ॥ वरुण भूप के लड़को ने दशकन्धर नृप को बांध लिया । जब लगे उठाने रावण को, हनुमान ने आकर रोक लिया || वरुण सुतो पर डालकर, नाग फांस का जाल । दशकन्धर को हनुमान ने खोल दिया तत्काल || क्रोधातुर हो वरुण भूप ने, हनुमत को फिर घेर लिया । लिये सहायता के रावण ने, निज दल आगे ठेल दिया || वज्र ंग चढ़े जब तेजी से तो, सभी वरुण दल घबराया । चिन्ह दिया झट सन्धि का, है समय समय की सब माया ||
दोहा
मान सभी मर्दन हुवा, अन्तिम मानी हार । शर्तें रावण की सभी, करी वरुण स्वीकार ॥ वरुण भूप की कन्यका, सत्यवती शुभ नाम । परणाई हनुमान को, समझ वीर अभिराम ॥