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________________ १२८ AAJA ' //www. रामायण गाना नं ३५ ( वसन्तमाला बहरे तबील ) अरि रानी तू रोके सुनाती किसे, बिना धर्म के कोई हमारा नहीं । आके कष्ट से कोई सहायक बने, ऐसा दुनिया मे कोई प्यारा नहीं । रानी जब तक सरोवर मे पानी रहे, सूखे पानी कोई ना चरण श्रधरे, वहां चारो तरफ से आ मेला भरे । 4447ww सारे माता पिता मित्र बन्धु कोई, AAAAA उड़ता पक्षी भी लेता उतारा नहीं । कोई मीठा वचन भी ना कहता सती, और सासु सुसर भाई द्वारा पति । जिन राज भजो मन धीर धरो, जब होता है पुण्य सितारा नहीं । शुक्ल शोभन कर्म से ही पाप हरो, सिद्ध ईश्वर प्रभु का ही ध्यान करो । बिना धर्म के होगा गुजारा नहीं । अंजना गाना नं० ३६ " कर्म चक्र ने निश्चय ही मुझे, दरदर रुलाया है । किसी का दोष क्या इसमे लिखा कर्मों का पाया है ।। किसी को आसरा देकर, निराशा कर दिया होगा । इसी कारण मेरी जननी ने भी मन से भुलाया है || सताई है अवश्य निर्दोष, कोई आत्मा मैने । मुझे व्यभिचारिणी कहकर, जो सासु ने सताया है ॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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