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हनुमानुत्पत्ति
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मै दुखियारी निर आधारा । धर्म रूप आसरा तुम्हारा ।। चरण कमल प्रभु शीश नमाऊं। अनमोल समय यह कव २ पाऊ ।।
दोहा विधि सहित वन्दना करी, करके अति गुण ग्राम । थकी हुई थी बैठ कर, लगी लेन चिश्राम ।।
चौपाई दासी ने फिर शीश नवाया । कर वन्दना निज हाल सुनाया । कारण कौन प्रभु बतलावो । कर्म भेद सारा दर्शावो॥ कलंक लगा किस कारण भारी। जिसने हम पर विपदा डारी ॥ अमित गति चारण मुनि बोले । कर्म सिद्धांत भेद सब खोले ।। अनन्त कर्म कहां तक बतलावे । कुछ जन्मो का हाल सुनावे ।।
दोहा सुनले रानी कान धर, कर्म बीज वट वृक्ष । जिसका फल तुम भोगती दोनो ही प्रत्यक्ष । जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र मे, मन्दरपुर वर नगरी कहिये। प्रिय नन्दी एक वणिक, जया नामक जिसकी नारी लहिये ।। पुत्र नाम सागर तिसके, था बाग भ्रमण एक गेज गया । दर्शन करके श्री मुनिराज के, सम दम खम की खोज हुवा ।।
दोहा निर्मल व्रत को पाल के, दूजे स्वर्ग मंझार ।
रुप वैक्रिय धार के, भोगे सुख अपार ।। नगर मृगांक सरि चन्द्र नरेश्वर, प्रियंगु वंग छोड रानी के जन्मा, सिंह चन्द्र सुत पुनः देवलोक पहुँचे, तप संयम शुभ आगे सुनो वृत्तान्त इसी का, फिर ज