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रामायण
राजा रानी और मित्र, प्रहसितं पवन पे आये है। था जलने को तैयार चिता मे, देख सभी घबराये हैं। शीघ्र कुमार को हटा लिया, लक्कड़ सब दूर हटाये हैं । हनुपुर है अन्जना रानी, सब भेद खोल दर्शाये है ।।
दोहा (प्रह्लाद नरेश) शूरवीर योद्धा बली, क्षत्रिय राजकुमार । नारी पीछे जान दे, यह क्या करी विचार ॥
दोहा ( पवनजय ) - अबला पीछे मरन का, मम नही पिता विचार । निर्दोपन को दुख दिय, यही कष्ट अपार ।। इतने कष्ट दिये सबने, नही रोष फेर भी लाती है । अवगुण तज लेती गुण सबके, पूर्ण सती कहाती है । पतिव्रता विनयवान पूरी है, मानन्द शीतल चन्दन के। धर्म दृढ़ दुख सहने मे, ऐसी जैसे तरुवर वन के । '
दोहा पवन जय आदि सभी, हनुपुर हुए तैयार । बैठ विमान में चल दिये, दिल में खुशी अपार ॥ खेचर ने जाकर कहा, हाल अंजना पास । दुःख पति का सुन हुई, मन मे अति उदास ॥ क्या मै पापिन ऐसी जन्मी, जो सबको ही दुखदायी हूं । सुख नहीं देखा एक दिवस, जिस दिनकी मै परणाई हूँ॥ फिर नहीं ऐसा कर्म करू', मुनिराज ने जो बतलाया था। कर्म बीज हो गये गिरि, कुल बारह घड़ी कमाया था ।