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हनुमानुत्पत्ति
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चला वहाँ से माता को, जो था सब हाल सुनाया है। सुन गिरि धरन मूर्छित होके, इतने मे राजा आया है।
दोहा हो सचेत कहने लगी, मैं पापिनी निर्भाग्य । बधु गई पुत्र चला, लगी कलेजे आग ॥
· गाना नं० ४० (केतुमति) जो सतावे और को, सुख वह कभी पाता नहीं। आज अब मुझ पर बनी, यह दुःख सहा जाता नहीं ।। मैने सताई अजना, पुत्र मेरा मरने लगा। राज गारत हो सभी, यह दुःख मुझे भाता नहीं। बेटा प्रहसित तूने कभी, मित्र जुदा किया नहीं। आज क्या होनी बनी, क्यो जाके समझाता नहीं। छोड़ तू आया अकेला, घात प्राणो की करे। फिर शुक्ल मै क्या करू, कुछ भी कहा जाता नहीं ॥
दोहा (प्रहसित) माता जी मैं क्या करू, समझाया हर बार। जब मैं कुछ न कर सका, तब आ करी पुकार ॥ शस्त्र तो मै ले आया, करे और ढङ्ग कुछ खबर नही। था दिल मे बेचैन उसे, कोई घड़ी पलक का सबर नहीं। शीघ्र बैठ विमान चलो, जाकर उनको समझावेगे। याद हुई देर अपघात करे, कर मलते ही रह जायेंगे ।
दोहा इतने मे ही आ गया, हनुपुर से विमान । अंजना का जो था पता, सभी बताया आन ॥