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हनुमानुत्पत्ति
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मता ने लेकर बच्चे को, अपने हृदय लगाया है। वह खुशी कथन नहीं कर सकते, फिर आगे पेच दबाया है ।
चौपाई आ उत्सव हनुपुर मे कीना । मामे दान खोल कर दीना॥ कैसे कहे अदभुत छवि न्यारी । घर घर मंगल गावे नारी ॥ हनुपुर नगर दशोठन भारी । हनुमत नाम दिया सुखकारी ॥ अपर नाम श्री शैल प्रधान । कल्प वृक्ष सम सुख महान ।। राज हंस जिम क्रीडा करे । वत्तीस लक्षण शुभ अंग परे ।। सुख को देख मात सख पावे । दाग देख अति मन मे लजावे ॥
दोहा और दुख सब हट गये, सुख मिल गया अमोल । दुःख एक बाकी रहा, जो सिर चढ़ा कुबोल ॥ धन्य घडी धन्य भाग वही, जब पति मेरा घर आवेगा। रही समुद्र-डूब वही । कालस आ दूर हटावेगा। सत्य मेरा प्रगट होगा, यह दाग पति आ धोवेगे। धक्के दिये जिन्होने मुझको । लज्जित अन्त मे होवेंगे।
दोहा पवन जय नप वरुण से, जीता दल मे जाय । हर्ष हुए दिल मे अति, सब प्रशसे आय ॥ प्रस्थान किया सबने वहां से, रावण लंका को आया है। और पवन जय ने आन पिता, माता को शीश नवाया है। जव पता लगा निज रानी का, हृदय पर वज्रपात हुवा। झट गिरा धरन मुछित होकर, पितु माता को संताप हुआ।