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रामायण
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• दोहा अष्टापद के रूप को, देख भागा यह शेर । रानी भी आगे बढ़ी, तनिक लाई देर ॥
आगे जाकर आ गया. सुन्दर एक स्थान । दासी रानी ने वहां, किया देख विश्राम ॥ शुभ नक्षत्र लगा आन, रानी ने पुत्र जाया है। रूप रंग को देख स्वयं, चन्द्रमा भी शर्माया है। प्रसन्न चित्त हो रानी भी, अपने मन में हर्षाई है। वर्तमान निज दशा देख, कुछ दिल में आर्ति आई है।
दोहा हाय आज वन खण्ड मे, मै दुखियारी नार । राज महल लेता जन्म, होती खुशी अपार ॥
गाना नं० ३८ लाल मेरे बेटा मेरे ओछे है भाग-(स्थायी)। पिता आज तेरा आता, तुझे हृदय लगाता॥ उत्सव अधिक मनाता, तेरा कर अनुराग। नारी मङ्गल गाती, हाथों धाइयें खिलाती ।। नानी भूषण पहनाती, लागी लेते सब लाग। कैदी सब छूट जाते, दानशाला मंडाते ॥ ले ले बधाइयां आते, गाते मङ्गल राग। लेता जन्म राजधानी, करता सैर विमानी ॥ पिता साथ रानी, मम दिल होता बाग बाग ॥ बन बन फिर फिर हारी, मैं हूं कर्मो की मारी। शुक्ल दुःख यह भारी, लग रहा सीने पर दाग ।