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हनुमानुत्पत्ति
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HARYANHA
हुई बेज्जती और कर्म बन्धाया, उसका फल रानी तू पाया ।। फिर लक्ष्मी ने धर्म शुद्ध पाला,पहिले स्वर्ग सुख अधिक रसाला ॥
दोहा देव लोक सुख भोग के, आई तू इस धाम ।
पवन जय है पति मिला, अंजना तेरा नाम । वसन्ततिलका वहिन तेरी थी, इसने प्रशंसा अति करी ॥ सामूदानी कर्म भोगने, यह भी तेरे साथ वरी।। जो कोई दुख दे औरो को, वह कभी नही सुख पाता है । बस्मा' जैसे कभी नहीं, मेहन्दी जैसा रंग लाता है।
• दोहा अशुभ कर्म रानी तेरा, होने वाला दूर ।
मामा आन मिले तुम्हे, मिले सभी सुख भूर ।। पति भी आन मिले जल्दी, मत घबरावो मन में रानी। गगन गति कर गये मुनि, चारण कह कर शीतल वाणी । ' रानी ने चरण धरा आगे, एक सिंह सामने जबर खड़ा । ' वह देख शेर को घबराई, जैसे हृदय पर वन पड़ा ।।
दोहा शरणा ले अरिहन्त का, पढ़न लगी नमोकार । उधर खड़ा है शेर वह, इधर खड़ी है नार ।। । शील धर्म का तेज शेर, नही आगे पैर बढ़ाता है। अनमोल श्री जिन धर्म, सभी आपत्ति दूर भागता है ।। मणि चूड़ एक विद्या धर, उस बन मे गया विचरने को। और अष्टापद का रूप किया, अबलाओं का दुख हरने को ।।