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रामायण
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दोहा
बैताड़ गिरि है अरुणपुर, भूप सुकण्ठ उदार।
कनकादरी रानी भली, रूप ला सुखकार ।। कनकोदरी के पुत्र हुवा था. नाम सिंहवाहन जिसका। राज सम्पदा भोग फेर, संयम में ध्यान हुवा तिसका ।। विमल नाथ के शासन मे, लक्ष्मी धर मनि थे तपधारी। पास उन्हीं के संयम लेकर, तप संयम किया अति भारी॥
दोहा
शरीर औदारिक छोड़ के, लंतक वंग मंझार ।
मन इच्छित भोगे वहां, जिसने सुख अपार ॥ - पूर्ण कर वह सुर की आयु, गर्भ तेरे मे आया है। सुखदायक सन्देशा अंजना, 'पहिले तुम्हे सुनाया है ।। इस पत्र के पैदा होते ही, दुख तेरा नस जायेगा।
और पूर्व से भी अधिक, तेरे हृदय मे सुख बस जायेगा ।। चर्म शरीरी जीव इसी भव में, यह मोक्ष सिधायेगा। यह नाम प्रसिद्ध करके तेरा, अति शूर वीर कहलायेगा ।।
अव हाल तेरा बतलाते हैं, यहां कनक रथ एक राजा था -थी कनक पुरी राजधानी, नीति से राज्य चलाता था ।
दोहा कनकोदरी लक्ष्मीवती दो थी जिसके नार । कनकोदरी के सुत हुआ, रूप कला शुभकार ।।
चौपाई लक्ष्मीवती सुत दिया लकोई, पुत्र विरह मे माता रोई। भेद मिला सुत लिया निकाल, बारा घड़ी दुःख हुवा मुहाल ||