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रामायण
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दोहा (दासी) आते है मुझको नजर, है कोई मुनि महान् । निश्चय कर मैने कहा, करते अात्म ध्यान ।। श्वेत वस्त्र है जैन मुनि, मुख पर मुखपत्ति लगी हुई। दो हाथ लटक रहे नीचे को, और दृष्टि ध्यान में जमी हुई ।।। ये लाखो में नहीं छिप सकते, निग्रन्थ मुनि अति श्रेष्ठ यति । बस अब समझो कि आन जगी, महारानी अपनी पुण्य रति ॥
दोहा (रानी) दर्शन हो निप्रन्थ के, निश्चय कटते पाप । दासी मेरी फड़कती, वामी है शुभ आंख ।।
गाना नं. ३७ समझ ले अब विपत्ति, दूर सारी होने वाली है। जाग आयेगी शुभ किस्मत, मुसीबत सोने वाली है ।। मुनि के चल करें दर्शन, हाल पूछेगी कर्मो का। श्री जिन वाणी मेरे, आज मल को धोने वाली है। पुण्य मेरे उदय आये, पाप सब दूर जायेगे। कृपा अरि हन्त भगवन् की, बीज शुभ बोने वाली है ।। रत्न सम्यक्त्व है मुझ पर, शील संतोष भी कायम । मुनि संगति मेरी ये आज, कालिस खोने वाली है। विपत्ति और अटवी मे, अनुपम लाभ यह पाया। मेरे इस धर्म गौरव को भी, दुनिया जोहने वाली है।
चौपाई उसी समय मुनि पास सिधाई । दर्शन कर रानी सुख पाई।। धन्य जन्म प्रभु तुमने धारा । आप तरे औरों को तारा ।।