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- हनुमानोत्पत्ति
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किसी प्यारी को प्रीतम से, जुदा मैने किया होगा। यही कारण जो विरहानल, से मन मेरा जलाया है । विपत्ति सम्पत्ति ऐश्वर्य, सुख दुख और निर्धनता । स्वयं निज कर्म से प्रत्येक, प्राणी ने बनाया है। अमानत मे खयानत, शुक्ल मुझसे हो गई होगी। जो मुझसे मेरे जीवन, धन को कर्मो ने छुड़ाया है ।।
दोहा दासी कहे रानी सुनो, यह वन खण्ड उजाड़ ।
रो रो कर मर जायंगी, कुछ नहीं निकले.सार ।। कुछ नहीं निकले सार, शेर चीतादि खा जावेगे। चलो अगाड़ी निकल कहीं, विश्राम फेर पावेगे॥ पाल गर्भ हो पुत्र तेरे, दुख सभी भाग जावेगे। पुत्र का मुख देख देख, मन अपना बहलावेगे ।
धम है एक सहाई, ना कर चिन्ता मन माहीं । ध्यान सर्वज्ञ का लावो, पंच परमेष्ठी हिये धार रानी मत दिल घबरावो ।।
:... दोहा
। दोनो आगे बढ़ चली, निर्जन बन घनघोर । हिसक जीव फिरे अति, बोल रहे कही मोर ॥ एक मुनि चहां गुफा मे, खड़े लगाकर ध्यान । दासी से रानी कहे वह, क्या देख पहिचान १५