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हनुमानुत्पत्ति
दोहा
आज्ञा पाकर भूप की, ले गये वन मंकार | वसन्तमाला और 'जना, छोड दई निराधार ॥ दोनो उस वन खड मे, रोवे आंसू डार | व्याकुलता छाई अति, दर्शत कष्ट अपार ॥
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अंजना गाना नं० ३५
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दुख पड़ गया हम पर भारा, इस बेइज्जती ने मुझको मारा । बारा वर्ष पति की जुदाई, मुश्किल से बनी थी रसाई || फिर गर्भ ये मैने धारा, इस बेज्जती । १ । फिर सासने ताने मारे, वो भी सहन किये मैने सारे | आखिर काला मुंह करके निकाला, इस बेज्जती । २ । पिता पालक भी हो गया उल्टा, माता भाई भी ना कोई सुलटा । अब तो श्राशा भी कर गई किनारा, इस बेज्जती जिस माता के था जन्म धारा, हाय उसने दिया ना स पति भी परदेश सिधारा, इस बेज्जती ने सुझको मारा | ४ | खिला किस्मत का यह फिसाना, मेरा शत्रु बना कुल जमाना । प्रभु तेरा ही एक सहारा, इस बेज्जती ने मुझको मारा । ५ । कौन धीर वंधावे हमारी, इस बन खण्ड के मझधार विना धर्म ना कोई हमारा, इस बेज्जती । ६। कहां संग सहेली हमारी, पास रहती थी हर वारी । सब किया है किनारा, इस बेज्जती .."
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दोहा ( वसन्तमाला )
रानी जी धीरज धरो, तुम हो गुण गम्भीर । रोने से कुछ ना बने, हरो धीर
से पीर ॥