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हनुमानुत्पत्ति
नाम बदनाम न करना, मुझे है तेरा शरणा । चरण मे शीश निवाऊ, निकले दोष यदि मेरा तो उसी समय मर जाऊ' ॥
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दोहा
गिरी गिराई मुद्रिका, लगी कहीं से हाथ । धक्का देकर सुत गया, आया बतावे रात ॥ जिसको नाम नहीं भाता, उसको आया बतलाती है । समक दुराचारण तुझको, माता भी नहीं बुलाती है || क्लकित करके दोनो कुल, फिर सती भी बनना चाहती है । निकल पापिनी यहां से, क्यों काला मुंह नहीं कर जाती है ॥
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दोहा
केतुमति ने उस समय, सेवक लिये बुलाय । ले जावो इसको अभी, पीहर दे
पहुॅचाय ॥ यह कलंक यहां से ले जाओ, महेन्द्र नृप को दे आना ।
। यदि नहीं रखे तो वहीं इसे धक्का देकर वापिस आना ॥
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कह देना सब बात साफ, यह मती जो तुमने व्याही है । उन सबको तो डोबाई, श्रव तुमको डोबन आई है |
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दोहा
सेवक जन लेकर गये, महेन्द्र नृप के पास । एकान्त बुलाकर के कहा, जो था मतलब खास ॥
जब सुना हाल हुआ दुःख बड़ा, दाँतों मे अंगुल दबाई है । यह सुता नहीं शत्रु मेरी, कीर्ति सब धूल मिलाई है ॥ अब शीघ्र यहाँ से ले जावो, और विजन स्थान छोड़ो जाकर । दुष्टा ये स्वयं मर जावेगी, अपनी करनी का फल पाकर ॥