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हनुमानुत्पत्ति
अंजना का गाना नं० ३४ तू है लासानी-पुण्य निशानी, कायम रहे यह गौरव तेरा
हितकारी सासु हमारी-ध्रुव किन्तु अन्धी यह ताकत है, जो लाती हम पर आफत है। यह नौतर ही जो जाफत है, क्यों गला हमारा कापत है ।। क्या इसमें तेरी बड़ाई है, गम्भीरता सभी भुलाई है। दीनो पर करी चढ़ाई है, जो प्रलय काल बन आई है । ना भरम की कही दवाई है, इसका अंजाम तबाही है। तुझको अब बेपरवाही है, ऐश्वर्य में गरवाई है ॥ कुछ कर्मो से डरना चाहिये, दुखियो का दुख हरना चाहिये। यह कोप दूर करना चाहिये, देना सबको सरना चाहिये ॥ सब रौद्र ध्यान यह दूर करो, विनती हमरी मजूर करो। सब चिन्ता दूर हजूर करो, चरणो से न हमको दूर करो। केतुमति अय अजना पापन, धिकार है तेरे सतीत्व पर,
पतिव्रत पर, इस कृत्य पर। अजना अरि प्रथम हृदय मे तोलो। फिर कुछ बोलो वचन
सुजानकर। गुणवान ससु जी बोलो कुछ वचन सुधारकर, कुछ ख्याल कर, सुन कान कर ।। ध्रुव । अरि उल्टी हम पर धौस जमा कर बोलती जैसे
नृत्यकर। अजना निष्कारण क्यो झगड़ा है। केतुमति क्या सुना नहीं। अंजना वृथा सब रगड़ा है। केतुमति दुःख मिला नहीं।