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बालि-रावण विग्रह
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दोनों ही को लड़ने दो, जो हारेगा नम जावेगा। देश प्रेम और राजसान, क्या सब ही कुछ बच जावेगा।।
दोहा सर्व सम्मति से लिया, यही नियत कराय। रण भूमि मे भूपति, दोनो दिये जुटाय ।। उत्तर पड़े रणधीर शूरमा, दोनो ही थे निडर बड़े। गर्ज ध्वनि घनघोर घटा से, जैसे बिजली कड़क पड़े। लगे मेदिनी थर्राने, अमोघ शस्त्र जब थान पड़े। अग्नि बाण कही धुन्ध बाण, विमान गगन में आय अड़े।
दोहा दशकन्धर घबरा गया, देख शक्ति तत्काल
समझ गया बाली नहीं है मेरा यह काल ।। गिरा देख मन रावण का, वाली ने अति कमाल किया । पकड़ हाथ चहूं ओर घुमाकर, धरती ऊपर पटक दिया । सुग्रीवादिक ने बाली से, रावण का पीछा छुड़वाया। हो शर्म सार शर्सिन्दा सा, झट लंका को वापिस आया ।।
दोहा नीचे ग्रीवा हो गई, मलते रह गये हाथ
सोचा था कुछ और ही, और हो गई बात । बाली नप का तेज बल, रावण पर गया छाय । रावण का जो 'घमण्ड था, पल मे दिया गमाय ॥
गाना नं० २० (तर्ज-फैसे दुनिया मे जो प्राणी, सदा नाशाद होता है।) औरो के दमने से विजय कब किसने पाई है।