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१०६
रामायण
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दोहा नाम तड़ित प्रभ तुम, तभी कोपे मन मंझार ।
आनन्द माली से, रहा तेरा द्वेष अपार ॥ अनित्य समझ आनन्द माली ने, दुनिया तज चारित्र लिया। ध्यानारूढ़ देख मुनिवर को, तैने दारुण दुःख दिया ।
आनन्द माली का भ्राता, कल्याण मुनि गुण आगर था । तेजू लेश्या लगा छोड़ने, तप जप का जो सागर था ॥
दोहा सत्यवती तब नार ने, मुनि शान्त किया आय।
लेश्या तुरन्त सहार ली, तुझको दिया बचाय ॥ कई जन्म बाद सहस्रार के घर, प्रा जन्मा इन्द्र नाम से तू । पुण्य भुगत के हुवा लज्जित, मन्द कर्मों के परिणाम से तू ।। दुःख दिया था जो मुनिराजों को, यह उसका ही फल पाया है। फल कर्म गति का समझ इन्द्र ने, संयम मे चित्त लाया है ॥
दोहा तीन खंड का अघिपति, दशकंधर नृप राय । बड़े बड़े भूपाल सब, गिरे चरण पर प्राय ॥
चौपाई एक दिवस दशकंधर राई । नग सुवर्ण पर पहुंचा जाई ।। अनन्त वीर्य वहां केवल ज्ञानी। तीन काल के अन्तर्यामी ।। सुन उपदेश धर्म सुखदाई । दशकंधर दिया प्रश्न सुनाई ।। ऐसा कौन कहो नृप राई । मेरी घात करे जो आई ।।
दोहा मुनिवर ने तब यो कहा, सुनो त्रिखंडी नाथ । पड़ेगा पाला आपको, वासुदेव के हाथ ।।