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हनुमानुत्पत्ति
१०७ www.rrrrr परनारी सम्बन्ध से, होगा तेरा नाश । पुण्य आपका है अभी, कुछ समय तलक प्रकाश ॥ उसी समय रावण ने, दिल मे यह प्रतिज्ञा धार लई । परनारी ना चाहे जो मुझको, उससे करूगा प्यार नहीं। करके नियम चला लंका को, मुनिवर को प्रणाम किया। मन वचन कर्मसे नियम, निभाने का दिल निश्चय धार लिया।
(इति रावणोत्पत्यधिकार)
हनुमानुत्पत्ति
दोहा उत्पत्ति उस वीर की, सनो लगा कर कान । नाम अमर जिन यहां किया, फिर पहुंचे निर्वाण ॥
गाना नं ३० पवनसुत अंजनी के जाए, धर्म के अवतार थे। सत्य के प्रतिपाल योद्धा, देश के शृंगार थे । वीरता के पुज तेजस्वी, गदाधारी यति । लंकपति आदि भी जिनकी, शक्ति पे बलिहारी थे। फांद के सागर को खलदल, दल सिया सुध लाये जब । राम सेना सहित उनपै, हो रहे बलिहारी थे ।। तेज तप संयम का पालन, भक्ति शक्ति थी अटल। . देश व्रतधारी थे योद्धा, सर्व शुद्धाचार थे ।।