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रामायण
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क्या लिखे महिमा शुक्ल, उपमा कोई मिलती नहीं । दीनबन्धु थे वह, दुःखियो के प्राणाधार थे।
__(तर्ज-वहरे शिकस्त गाना ) गुण वर्णन मैं करू कहां तक न इतनी शक्ति जबान में है। शूर वीरता तेज निराला वीर्य सामर्थ्य हनुमान में है। सच्चे पक्ष के थे प्रतिपालक, उत्पात बुद्धि हर आन में है। कष्ट निवारा था माता का प्रगट, नाम किया जहान में है ।। उपकार तेरा नहीं दे सकता यह शब्द राम की जवान में है। बड़े-बड़े योद्धा किये पसण, शक्ति अद्भुत कमान में है। तप संयम की क्या करूं बड़ाई, शक्ति नहीं प्रमाण में है। शुक्ल विराजे जा शिवपुर में, यह लज्जत पद निर्वाण मे है ॥
दोहा रूपाचल पर्वत भला, शोभनीक स्थान ।
बाग बगीचे महल का, गौरव अधिक महान ।। आदित्य नगर प्रहलाद भूप, गृह केतुमती रानी दानी। उदयाचल पे भानु प्रकाश, स्वपने में देखा पटरानी ॥ वृत्तान्त सुनाया राजा को, नप ने फल स्वप्न का बतलाया। शुभ जन्म हुवा जब पुत्र का, राष्ट्र भर मे आनन्द छाया ॥
दोहा दान बहुत नृप ने दिया, निर्धन किये धनवान् ।
नाम धरा फिर कुमर का, पवन जय गुणवान् ।। शुभ लक्षण थे बत्तीस अग मे, सर्व कला के नाता थे। प्रण वीर कुवर रणधीर पवन, बलवीर ये जग विख्याता थे। महेन्द्रपुर इक अन्य नगर था, भूप महेन्द्र वहाँ का था। थे सौपुत्र बलवान, और पुत्री का नाम अंजना था।