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रामायण mroworworrrrrrrrrrrrrr
नव युवकाये थी इधर, गा रहीं मंगलाचार । होनहार के हृदय मे, था कुछ और विचार ।।
(गाना सहेलियो का कव्वाली) गोरी मुख पर है काली लटा छा रही
चन्द्रमा पर है मानो छटा छा रही। उमड़ आई दरिया बरसने लगी,
चांदनी चन्द्रमा को तरसने लगी। है जटा शंकरी पर जटा छा रही,
चन्द्रमा पर है मानो घटा छा रही । तेरी उलझी लटा कौन सुलझायगी,
हम संवारे तो मंहदी उतर जायगी। है शुक्ल पक्ष मे क्या छटा छा रही, चन्द्रमा पर है मानो घटा छा रही।
दोहा सब सखियां थी गा रही प्रेम भरा यह गान ।
तव प्रारम्भ किया हास्य यो एक सखी ने श्रान । देखो री सखी अंजना देवी, धर्मात्मा पुण्य निशानी है। सुर नल कुबेर सम पति, पवन वर मिला अनुपम दानी है। है राजदुलारी चन्द्रमुखी, सूरज मुख पवनकुमार सखी। अंजना है शीलवती पवन भी, वीरता का अवतार सखी ।। चिर जिए युगल जोड़ी बांकी, सौदर्य के भण्डार सखी। जग मे यश कीर्ति पाये शुक्ल, भारत के प्राणाधार सखी ।
दोहा
मिश्रकेशी कहे सखी, गुण भी देखो बीच । विद्युत प्रभ कहां केशरी, पवन जय कहां रीछ ।।