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रामायण
क्या कहूँगी हाल विचारा, हुवा विमुख कन्त हमारा। अय कर्म दुष्ट हत्यारे, तैने कब के बदले निकाले जी। वर्षे नयनो से जल धारा, हुवा विमुख कन्त हमारा ॥ .
दोहा बसन्त तिलका ने कहो, रानी दिल मत गेर।
सभी ठीक हो जायगा, है कोई दिन का फेर ।। कभी भिखारी बने जीव, कभी राजन पति बन जाता है । कभी नरक दुःख भोगे जीव, कभी स्वर्ग महा सुख पाता है। जब उदय पाप कोई होता है, तो सबके दिल फिर जाते है। चढ़े पुण्य चरणों मे मिरते, और ठोकरें खाते है ।
दोहा मान सरोवर पवन जय, सोया सेज मंझार ।
चकवी पति वियोग मे, रोवे जारों जार ।। सुने रुदन के शब्द कुमर को, नींद नहीं कुछ आती है । पूछा मित्र प्रहसित कहो, यह क्यों इतना चिल्लाती है । इसकी चीख पुकार हमें, आराम नहीं करने देती। भर भर आती नीद आंख मे, जरा नहीं पड़ने देती।।
दोहा प्रहसित कहे यह, दम्पति रहता है संयोग । रजनी आ बैरन हुई, स्वामी हुआ वियोग । सोच कुमर को आगई, कांप उठा तत्काल । पक्षी की जब यह दशा, अंजना का क्या हाल ॥ इसी तरह वह रात दिवस, रोती और कुरलाती होगी। हार शृङ्गार छोड़ सारे ना, खाती न पीती होगी ।।