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रामायण mmmmmmmmmmmmmmnamarrrrrrrrrrrrrrrrrrrr
क्या बिजली का टुकड़ा था, वह या रवि किरण गई आकरके। ना जाने कहां वह लोप हुई, एक चोट हृदय पर ला करके ॥
वह रूपवती चित्त चोर मेरी, सुध बुध सारी बिसर कोई यत्न करो मिलने का उसे, वह मन को मेरे चुराय गई।
दुखिया का दर्दी तेरे सिवा, अय मित्र नजर आता ही नही। दिल खोल दिखाऊं जिसे अपना, वह चंद्र नजर आता ही नहीं।
दोहा हाल मित्र ने सब कहा, जो था पता निशान । करी याचना भूप से, वही ध्वनि वही तान ॥ टेवा मगवा कर ज्वलनसिंह ने, ज्योतिषी को दिखलाया है। स्वल्पायु है सहस गति की, गणितानुसार बतलाया है। तब ज्वलनसिंह ने पुत्री का, सुग्रीव से नाता जोड़ दिया।
और दान दिया दिल खोल, भूपको हाथ जोड़कर विदा किया । पता लगा जब सहस गति को, दुख सागर मे लीन हुआ। सोच विचार अनेक किये, पर आर्तध्यानी दीन हुवा ।
दोहा
तारा के पैदा हुए, शूर वीर सुत दोय ।
जयानन्द अङ्गद भला, बेली सम फल जोय ।। सहस गति ने उधर रातदिन, सोच के बहुत उपाय किया । रूप परिवर्तन विद्या के साधन में झट ध्यान दिया । इधर लगा वह साधन में, अब दशकंधर क्या चाहता है। सर्व देश साधन कारण, दल बल विमान सजाता है।