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रामायण
गाना नं० २५ अय. फूट देवी तूने, सव को रुला दिया है। अज्ञानियो के दिल पे, अड्डा जमा दिया है ।। अटूट प्रेम मे जो, लवलीन हो रहे थे। उनके भी सुख का, कारण तूने भुला दिया है । मिल बैठ प्रेम से जो, निज लाभ सोचते थे। विपरीत इसके तूने, बिल्कुल बना दिया है । उन्नत थे सब समझते, मानो सुमेरु चोटी। गौरव गिराके उनका, धूलि मिला दिया है। सब प्रेम की तरंग मे, आनन्द ले रहे थे। लहरें सुखा के तूने, बालू उड़ा दिया है ॥ अब प्रेम के स्वपन की भी, हो रही निराशा। भर विरोध विप को, उर मे हृदय हिला दिया है । है धर्म शुक्ल दोनो, यह ध्यान नाम मात्र । अरती विरोध का तू , दरिया बहा दिया है।
दोहा पूर्व पुण्य से यदि मिले, सुख साधन का अंश ।
अन्यों का अज्ञान वश, करने लगे विध्वंस ॥ प्रय मित्रगणो कुछ सोच करो, किस वात पे आप अकड़ते हो। जिस फूट ने सबका नाश किया, क्यो उसका हाथ पकड़ते हो । मानिन्द्र नरक वह घर बनता, जिसमें यह चरण टिकाती है। मित्रो का दिल फट जाता है, जब अपना कदम जमाती है । वह अधोलोकवत् देश बने, जब यह महारानी आती है। स्वपन मात्र ना सुख शान्ति, उस देश मे रहने पाती है।।