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रावण दिग्विजय
-~-~~~~~~ramm कायर अति बल हीन, अपौरुष तुम्हारे मन होए हैं । प्रथम ही देता मसल, दिया मुझे रोक आज रोये हैं ।।
दौड़
अरि की करे बड़ाई, मेरे मन को नही भाई । भय क्या दिखलाते हैं, उदय होत ही भानु के सब तारे छिप जाते है।
दोहा निर्लज्जता की बात है, जो तुम किया विचार । शत्रु को दे बहन मैं, करू सांप से प्यार ॥ इतने मे दशकधर का दूत भी पहुंचा आय । इन्द्र कहने लगा, पहले माथ नमाय ।।
दोहा नमस्कार मम लीजिये, धीर वीर महाराज।
दो अक्षरी एक बात मैं कहने आया आज ॥ कहने आया आज आपका, भला सदा चाहता हूँ। शक्ति भक्ति दो जीव के, रक्षक बतलाता हूं।
करो जो हो स्वाधीन आपके, मैं वापिस जाता हूं। । - देओ भेट संग्राम करो या, अन्तिम समझता हूं,
दोहा । दूत वचन सुन इन्द्र को, छाया रोष अपार । _ वेइज्जती से दूत को, धक्का दे किया बाहर ॥ रण तूर बजाया उसी समय, सुन शूर सभी हर्षाये हैं । अव वीर परस्पर रण भूमि को, तेजी से उठ धाए है।। अति घोर संग्राम हुवा जहाँ रक्त फुवारे चलते हैं। आते है अग्नि वारण उन्हे जल वाण से शीघ्र मसलते है।