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रावण दिग्विजय
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पुण्य प्रबल महा रावण का, सभी तरह पौवारे हैं। उल्टा देव कुवेर से समझो, कर्मो के फल न्यारे है।। अय आजकल के पामर प्राणियो, क्यों आपस में लड़ते हो। क्रोध परस्पर करके क्यो, महादुःख कूप मे पड़ते हो।
दोहा अर्ज उभय कर जोड़कर, करती हूँ सरकार । उपरम्भा की विनती पर, कुछ करे विचार ॥ नृप से कुछ अनबन होने पर, महारानी आपको चाहती है। आशाली विद्या सहित, लिये चक्र वह रानी आती है। मीन मेख आदि विचार, करने का कोई काम नही। यदि अब चूके तो, समझ लेना इस फेल का खुश अंजाम नहीं।
दोहा रावण ने कहा बोल मत रसना करले बन्द ।
क्यो हम पर गेरन लगी, प्रेम जाल के फन्द ।। प्रेम जाल के फन्द सभी क्या अनुचित बात सुनाई। ऐसा भाषण करने पर, क्या तुझे शर्म ना आई। साथ हमारे क्षत्रापन पर, धूल डालनी चाही। आज हमारे उज्ज्वल, मुख पर स्याही मलने आई।
दौड़ प्रथम तो सभी फरेब है, राग से हमे परहेज है। सहायता हमे ना चाहिये, डाकू चोर उचक्को की । गणना से हमे ना लाइये ।।
गाना न २६ ऐयाशी करते है इसरत मे, पड़ गौरव को खोते हैं। नतीजा निकलता अन्तिम वे, सिर धुन धुन के रोते है
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