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चिरक्त बाली
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पर्याप्त अपर्याप्त चौहु गति आठ का फेरा अस्थिर चौरासी का डेरा। मोक्ष अंक थिर नवका रे॥२॥ दुनिया शहर सराय पंथ है, आवागमन बसेरात्यागो मिथ्या भ्रम अंधेरा। फिकर करो नर भवका रे॥३॥ धर्म शुक्ल निवृत्ति भाव तप, भोजन है आत्म काबाकी भाड़ा पुद्गल तन का, खाना गेहूं जब का रे ॥४॥
दोहा
राज ताज सुग्रीव ले दीघ विचारे ताम ।
शुभ विचार मुख रूप है, उलट सोच मुख श्याम ।। अब वह शक्ति कहां मुझ मे, जो बाली वीर नरेश मे थी। अपमान किया रावण का, फिर भी इज्जत रही देश मे थी। सुप्रभा शुभ पुत्री का, दशकन्धर से विवाह किया। प्रेम भाव सब पूर्ववत्, सुग्रीव नरेश ने जोड़ लिया ।
दोहा नित्या लोकज पुर भला, चित्या लोक नरेश ।। रत्नावली कन्या अति, रूप कला सुविशेष ।। पुष्पक बैठ विमान मे, लगा उधर को जान ।
नग अष्टापद आयके, अटका तुरत विमान ॥ जब दृष्टि पसारी नीचे को. तो मुनि ध्यान में खड़ा हुवा। मुख पर मुख पति शोभरही, जैसे चन्द्रमा चढ़ा हुवा। दो भुजा लटक रही नीचे को, निर्भय वनमे जिम शेर खड़ा। देख मुनि को दशकन्धर, झट क्रोधानल मे भवक पड़ा।
दोहा दशकन्धर नूप सोचता, यह चाली मुनिराय । शत्रु से अपना अभी, बदला लेऊँ चुकाय ॥