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बालि-रावण विग्रह
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देव गुरु को छोड़ नहीं, नमने का शीश हमारा । तुम्हें आज तक मिला नहीं, कोई शूर वीर बलवारा ॥
बड़ो का काम बडो के, साथ में गया उन्हो के । किस लिये घबराता है, आ रण भूमि मे निकल यदि परभव जाना चाहता है।
दोहा सुनी बात जब दूत से, जल बल हो गया ढेर ।
जंगी बिगुल बजा दई, तनिक न लाई देर ।। तैयार हुए सब शूरमा, बड़े बड़े बलवीर। धावा बोल के चल दिये, गजे रहे रणधीर ॥ दोनो ओर सजी सेना, आ धूल गगन मे छाई है।
आकाश मे रहे विमान घूम, जब अनी से अनी मिलाई है। मारु बाजा बजा रहे, धौसे पर चोट जमाई है। ब्रह्माण्ड लगा जब फटने को, तो मानो प्रलय आई है।
दोहा
उभय केसरी जब चढ़े, कॉपन लगी जमीन ।
लगे सभी जन तड़फने, जैसे जल बिन मीन ॥ दोनो पक्षो के वीर बैठ, लगे सोचन मौका जाता है। लाखो वर्षों का मेल जोल, अब छिन्न भिन्न हुआ चाहता है। कोई कारण नजर नहीं आता, जिस पर यह इतना रगड़ा है। नमस्कार या भेट जरा सी, बस मामूली झगड़ा है।
दोहा सुग्रीव कहे निज सभा को, रहस्य बताऊ एक । लंका वाले यदि मानले, रहे हमारी टेक ।।