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रामायण
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गाना नं० १८ (तर्ज-कौन कहता है कि जालिम को सजा मिलती नहीं)
काल चक्कर के सदा अनुकूल रहना चाहिये।
जैसी अवस्था हो उसे, धैर्य से सहना चाहिये ।। चांद पर देखो अवस्था, तीस दिन मे तीस है। या वेल सागर की तरह, हमको भी बहना चाहिये ।। देखले प्रत्यक्ष सूर्य की अवस्था तीन है। वर्ष की ऋतु तीन या छह, होती कहना चाहिये ।। कोई चढ़ता हटता ढलता, नियम है संसार का । बुद्धिमत्ता यही शुक्ल किसमत का लहना चाहिये।४।
दोहा विभीषण की बात मे मिल गई सवकी बात । दूत गया बाली निकट, अगले दिन प्रभात ॥ नमस्कार मम लीजिए, खड़ा सामने दास । आगे श्री दशकन्धर का, सुनो हुकम जो खास ॥ महाराजा ने प्रेम भाव से खबर यही पहुंचाई है। कीर्ति धवल और श्रीकंठ से, परम्परा चली आई है। ध्यान लगा कर देखोगे तो, सभी पता लग जायेगा। यह वानर द्वीप तीन सौ जोजन, सभी हमारा पायेगा ।
दोहा मान नहीं अब कीजिये, यही बात का सार ।
या भक्ति हृदय धरो, या रण हो तैयार ॥ सुनकर सारी वार्ता, बोले बाली फेर । दशकन्धर से जा कहो, क्यो करते हो देर ।। क्यो करते हो देर यहां, नंगा है तेग दुधारा रण भूमि मे हाथ रंगूंगा, कर कर ढेर तुम्हारा ।।