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बालि - रावण विग्रह
५ -- बालि - रावण विग्रह दोहा
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इस कारण से दशकन्धर ने किया एक दर्बार । मन्त्री संग मिल बैठकर, करने लगा विचार ||
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किस कारण बाली हुआ, हमसे आज विरुद्ध । क्या उससे अब चाहिये, हमको करना युद्ध | अब कहो सोच करके सबही, बाली से क्या चाहिये करना । सब नियम उप नियम तोड़ दिये, और छोड़ दई मेरी शरणा ॥ क्या दूत पठा करके पहले, राजी से समझाना चाहिये । रण तूर बजा या सूर्खता का | स्वाद चखा देना चाहिये || दोहा ( भानुकर्ण )
कृतघ्नता की बात है, उसकी सब महाराज । चरणी गिरते थे बड़े, वाली कड़ा आज || वह दिन भूल गया बाली, जब बड़े कैद में सड़ते थे । जहां गिरा पसीना उनका कुछ वहां खून हमारे पड़ते थे || आपने बन्ध छुड़ाये थे, और किष्किन्धा का राज्य दिया । ऐसे का मान करो मर्दन, और जिसने उसका साथ किया ।
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दोहा
विभीषण कहने लगा, सुनो जरा कर ध्यान । बाली कोई हलवा नहीं, शूर वीर बलवान ॥ मामूली कोई चीज नही, और विचार अपना रखता है ।
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रही बात बड़ो तक की कोई जाकर समझा सकता है || पहिले दूत भेज करके, इस बात का रहस्य प्रतीत करो । फिर बाद मे जैसा हो विचार, वैसा सब कार्य नियत करो ॥
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