________________
रावण-वंश
wwwwwwwwwwwwwwwimmm
मिलान जैसी पद्मा ये वैसी हमने, ना घर किसी के है नार देखी । तो शान शौकत व रूप. लावण्य मे इसकी शोभा अपार देखी।
दोहा अब उत्तर दू' मै इसे, हां ना मे से कौन । या कुछ और विचार लू, जरा धार कर मौन ।। बड़ी कौशिका बहिन इसी की, वैसवा को विवाही है। यह शत्रु परम हमारे की, जो साली यहाँ पर आई है ॥ विद्या सिद्धि बाद मुख्य, आई लक्ष्मी कैसे छोड़े। कोई विघ्न न डाल देवे शत्रु, सहसा नाता कैसे जोड़ें। समय सोच कर बात करो, बुद्धिमानों का कहना है । यदि हुई देर तो भेद समझ, शत्रु ने कब यह सहना है ॥ व्योम बिन्दु पर भी निश्चय, प्रभाव उन्ही का होना है। इसलिये करेगे धूमधाम, तो मानो सर्वस्व खोना है।। है निश्चय प्रेम कैकसी का, मम साथ कभी ना छोड़ेगी यदि मात-पिता ना माने तो, उनका भी कहना मोडेगी । पर अस्थान मित्रता के नृप से, शत्रु का नाता करना है । जो होना चाहिये रस ही नहीं, तो फिर क्या साथ पकडना है। दो दिन मे ही सहमत होकर, यदि सब ही कारज कर लेवें। तो निश्चय इष्ट हमे होगा, नही क्यों आपत्ति सिर लेवे ॥ अनुराग इसे यदि पूरा है, तो फिर देरी का काम नहीं । नहीं पता सभी लग जावेगा कि, प्रेम का नाम निशान नहीं ।।
दोहा (रत्नस्रवा) क्या कह दूं मै अब तुम्हे, अपने मुख से भाष । हां मुश्किल यदि ना कहूं, तो होगे आप उदास ।