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रावण-वंश
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दोहा एक समय महारानी जी, पहिन गले फूलमाल । दृश्य देखती स्वप्न मे सुनलो उसका हाल ।। प्रवल सिंह नभ से उतरा, गज कुम्भस्थल को दलता हुआ। अद्भुत लहरें चिंहाड़ शब्द, प्रवेश मेरे मुख करता हुआ। जब खुली आंख महारानी की, स्वप्ने पर ध्यान जमाया है। करके निश्चय महाराजा पे, आकर सब हाल बताया है।
दोहा हाल स्वप्न का नप कहे, सुन रानी मम बात । पुत्र जन्मेगा तेरे, कटे सभी सन्ताप ।। स्वप्न अर्थ धारण किया, रानी चतुर सुजान। शत्रु के सिर पग धरू, गर्भ प्रभावे ध्यान ॥ तलवार काढ देखे मुख को, अंग तोड़ मरोड़ दिखाती है। सम्पूर्ण शत्रु नाश करू', कभी ऐसा शब्द सुनाती है ॥ कभी ऐसा दिल में चाहती है, इन्द्र भूप का ताज हरूँ। तीन खण्ड में आन मनाकर, अखिल भूमि का राज करूँ।।
दोहा
पुत्र जब पैदा हुआ, बरती खुशी अपार। नाच रंग शोभा अधिक, खुले दान भण्डार ॥ गिरि बेल मानिन्द पुत्र निर्भय, नित्य वृद्धि पाता है। सर्व सुलक्षण देख देख कर, जन समूह हर्षाता है।पूर्व देव भूपेन्द्र ने था, नौ माणिक्य का हार दिया। वह हार उठाकर राजकुंवर ने, अपने गल में डाल दिया ।