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रामायण rrrrrrrrrrrn
देश धर्म गुरु संघ सेवा करे,
वो ही दुनिया की क्या मोक्ष लक्ष्मी वरे। पाप अष्टादशो से बचे सर्वदा ॥३॥ शुक्ल निवृत्ति की तरफ ही बढ़ो, और भावो से सर्वज्ञ वाणी पढ़ो। हो सही लक्ष्य अपना ये ही मुद्दा ॥४॥
दोहा सुनते ही दशकन्धर ने, दी सेना पहुंचाय । फिर ललकारे ऑप जा, छक्के दिये छुड़ाय ।। जब सुनी बात दशकन्धर है, तो रंग सभी के बिगड़ गये। लगे भागने जान बचा कर, योद्धे रण मे बिछड़ गये । यह दृश्य देख यम घबराया, बस अन्त पीठ दिखलाई है। सूर्य रक्ष के बन्ध छुड़ा, रावण ने प्रीति बढ़ाई है।
दोहा इन्द्र को झट दी खबर, विद्याधर ने आन । किष्किन्धा लंका लई, दशकन्धर ने आन ।। रूप अति विकराल बना, मानो आपत्ति आई है। अनुमान नजर ये आते है, कि सबकी आज सफाई है ।। पराजय हो यम भी आ पहुँचा, जो-जो बीता बतलाया है। सब इन्द्र भूप को सुनते ही झट क्रोध बदन में छाया है ।।
दोहा सुनते ही सब वार्ता, लगी हृदय मे आग । कोप गर्न ऐसे करे, जैसे जहरी नाग । तोड. दिये दो लोकपाल, मम इन्द्रपन में कसर पड़ी। जा पीलू शक्ति रावण की, जैसे घानी अन्दर ककड़ी ॥