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रावण-वंश
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दोहा दशकन्धर लंका लई, पुष्पक लिया विमान । मात मनोरथ सिद्ध किया, पुरुषा यह प्रमाण ॥ भुवनालंकृत गज मिला, नग वैताड के मूल । यह भी होता रत्न इक, मन इच्छा अनुकूल ।।
जहाँ पर हो रही लड़ाई है।
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सूर्यरज और ऋक्ष सुरज, किष्किन्धी सुत बलदाई है ॥ यमराज उधर था महाबली, जहाँ युद्ध अति घनघोर हुआ। सूर्य ऋक्ष को यमराजा ने, कारागार मे ठोस दिया ।
दोहा लिये सहायता के तुरत, खेचर बैठ विमान । रावण से आकर कहा, पहिले कर प्रणाम ।। महाराज तुम्हारे होते हुए, किष्किन्धी नप सुत कैद पड़े। अब आप सहाय करो जल्दी, मैदान मे शूरे अड़े खड़े ।। प्रेम बड़ों में ऐसा था, वह इनका हुक्म बजाते थे। और यह भी उनके लिये, कष्ट मे अपना खून बहाते थे।
गाना नं १२
(तर्ज-खिदमते धर्म पर) मनुष्य ही मनुष्य के काम आवे सदा,
___ फर्ज अपना हो दुनिया मे तब ही अदा ॥टेक।। किसी प्राणी पे विपदा कोई आ पड़े,
होवे शक्ति के अन्दर खबर फिर पड़े। अपना कर देवो उसके लिये सब फिदा ॥२॥